जीने वाले क़ज़ा से डरते हैं
ज़हर पी कर दवा से डरते हैं
Mir Taqi Mir
Gulzar
Habib Jalib
Jaun Eliya
Parveen Shakir
Anwar Masood
Faiz Ahmad Faiz
Ahmad Faraz
Javed Akhtar
Wasi Shah
Allama Iqbal
Mohsin Naqvi
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(597) Peoples Rate This
शाम-ए-ग़म करवट बदलता ही नहीं
इश्क़ का कोई ख़ैर-ख़्वाह तो है
वो अगर बुरा न मानें तो जहान-ए-रंग-ओ-बू में
उठी फिर दिल में इक मौज-ए-शबाब आहिस्ता आहिस्ता
नसीब दर पे तिरे आज़माने आया हूँ
लतीफ़ पर्दों से थे नुमायाँ मकीं के जल्वे मकाँ से पहले
आँख से आँख मिलाता है कोई
कभी यक-ब-यक तवज्जोह कभी दफ़अतन तग़ाफ़ुल
खुल गया उन की आरज़ू में ये राज़
सुना है ज़िंदगी वीरानियों ने लूट ली मिल कर
कैसे कह दूँ की मुलाक़ात नहीं होती है
आख़िरी वक़्त है आख़िरी साँस है ज़िंदगी की है शाम आख़िरी आख़िरी