सुना है ज़िंदगी वीरानियों ने लूट ली मिल कर
न जाने ज़िंदगी के नाज़-बरदारों पे क्या गुज़री
Habib Jalib
Mohsin Naqvi
Mir Taqi Mir
Allama Iqbal
Faiz Ahmad Faiz
Javed Akhtar
Parveen Shakir
Rahat Indori
Anwar Masood
Jaun Eliya
Ahmad Faraz
Gulzar
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दुश्मनों को सितम का ख़ौफ़ नहीं
आँख से आँख मिलाता है कोई
करने दो अगर क़त्ताल-ए-जहाँ तलवार की बातें करते हैं
मुझे छोड़ दे मेरे हाल पर तिरा क्या भरोसा है चारागर
शाम-ए-ग़म करवट बदलता ही नहीं
उन को शरह-ए-ग़म सुनाई जाएगी
हम उन की अंजुमन का समाँ बन के रह गए
तुम फिर उसी अदा से अंगड़ाई ले के हँस दो
उजाले गर्मी-ए-रफ़्तार का ही साथ देते हैं
मुझे दोस्त कहने वाले ज़रा दोस्ती निभा दे
आँख उन को देखती है नज़ारा किए बग़ैर
दुनिया की रिवायात से बेगाना नहीं हूँ