तुम फिर उसी अदा से अंगड़ाई ले के हँस दो
आ जाएगा पलट कर गुज़रा हुआ ज़माना
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तिरी यादों से दिल फ़रोज़ाँ करेंगे
फिर वही जोहद-ए-मुसलसल फिर वही फ़िक्र-ए-मआश
रहमतों से निबाह में गुज़री
मुझे दोस्त कहने वाले ज़रा दोस्ती निभा दे
उजाले गर्मी-ए-रफ़्तार का ही साथ देते हैं
वो हवा दे रहे हैं दामन की
वज्ह-ए-क़द्र-ओ-क़ीमत-ए-दिल हुस्न की तनवीर है
वही कारवाँ वही रास्ते वही ज़िंदगी वही मरहले
हाए इस मजबूरी-ए-ज़ौक़-ए-नज़र को क्या करूँ
मिरी तेज़-गामियों से नहीं बर्क़ को भी निस्बत
पैहम तलाश-ए-दोस्त मैं करता चला गया