रहमतों से निबाह में गुज़री
उम्र सारी गुनाह में गुज़री
Jaun Eliya
Anwar Masood
Habib Jalib
Wasi Shah
Mir Taqi Mir
Mohsin Naqvi
Allama Iqbal
Javed Akhtar
Parveen Shakir
Faiz Ahmad Faiz
Rahat Indori
Ahmad Faraz
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(634) Peoples Rate This
ग़म-ए-हयात भी आग़ोश-ए-हुस्न-ए-यार में है
मुझे तो क़ैद-ए-मोहब्बत अज़ीज़ थी लेकिन
करने दो अगर क़त्ताल-ए-जहाँ तलवार की बातें करते हैं
आदाब-ए-आशिक़ी से बेगाना कह रही है
जब कभी हम तिरे कूचे से गुज़र जाते हैं
मिरी ज़िंदगी पे न मुस्कुरा मुझे ज़िंदगी का अलम नहीं
इश्क़ की चिंगारियों को फिर हवा देने लगे
कोई दिलकश नज़ारा हो कोई दिलचस्प मंज़र हो
वो दिल में रहते हैं दिल का निशाँ नहीं मा'लूम
दूर हैं वो और कितनी दूर
सरगुज़िश्त-ए-दिल को रूदाद-ए-जहाँ समझा था मैं
तिरी यादों से दिल फ़रोज़ाँ करेंगे