पी शौक़ से वाइज़ अरे क्या बात है डर की
दोज़ख़ तिरे क़ब्ज़े में है जन्नत तिरे घर की
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इश्क़ का कोई ख़ैर-ख़्वाह तो है
ज़िंदगी उन की चाह में गुज़री
ख़ाना-ए-उम्मीद बे-नूर-ओ-ज़िया होने को है
रंग-ए-सनम-कदा जो ज़रा याद आ गया
मैं बताऊँ फ़र्क़ नासेह जो है मुझ में और तुझ में
जब हुआ ज़िक्र ज़माने में मोहब्बत का 'शकील'
जीने वाले क़ज़ा से डरते हैं
ऐ मोहब्बत तिरे अंजाम पे रोना आया
ये दुनिया है यहाँ दिल को लगाना किस को आता है
बे-ख़ुदी है न होशियारी है
तस्वीर बनाता हूँ तिरी ख़ून-ए-जिगर से
अपनों ने नज़र फेरी तो दिल तू ने दिया साथ