उजाले गर्मी-ए-रफ़्तार का ही साथ देते हैं
बसेरा था जहाँ अपना वहीं तक आफ़्ताब आया
Faiz Ahmad Faiz
Ahmad Faraz
Javed Akhtar
Mir Taqi Mir
Rahat Indori
Allama Iqbal
Jaun Eliya
Gulzar
Parveen Shakir
Wasi Shah
Mohsin Naqvi
Habib Jalib
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(608) Peoples Rate This
आप जो कुछ कहें हमें मंज़ूर
मोहब्बत ही में मिलते हैं शिकायत के मज़े पैहम
किसी को जब निगाहों के मुक़ाबिल देख लेता हूँ
मिरी ज़िंदगी है ज़ालिम तिरे ग़म से आश्कारा
न पैमाने खनकते हैं न दौर-ए-जाम चलता है
बहार आई किसी का सामना करने का वक़्त आया
कैसे कह दूँ की मुलाक़ात नहीं होती है
वो दिल में रहते हैं दिल का निशाँ नहीं मा'लूम
सुब्ह का अफ़्साना कह कर शाम से
शायद आग़ाज़ हुआ फिर किसी अफ़्साने का
मेरी बर्बादी को चश्म-ए-मो'तबर से देखिए
नियाज़-ओ-नाज़ की ये शान-ए-ज़ेबाई नहीं जाती