मोहब्बत ही में मिलते हैं शिकायत के मज़े पैहम
मोहब्बत जितनी बढ़ती है शिकायत होती जाती है
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उन्हें अपने दिल की ख़बरें मिरे दिल से मिल रही हैं
मुझे आ गया यक़ीं सा कि यही है मेरी मंज़िल
उठी फिर दिल में इक मौज-ए-शबाब आहिस्ता आहिस्ता
अपनों ने नज़र फेरी तो दिल तू ने दिया साथ
वो अगर बुरा न मानें तो जहान-ए-रंग-ओ-बू में
'शकील' इस दर्जा मायूसी शुरू-ए-इश्क़ में कैसी
शोख़ नज़रों में जो शामिल बरहमी हो जाएगी
सितम-नवाज़ी-ए-पैहम है इश्क़ की फ़ितरत
चाहिए ख़ुद पे यक़ीन-ए-कामिल
तिरी यादों से दिल फ़रोज़ाँ करेंगे
मिरी ज़िंदगी है ज़ालिम तिरे ग़म से आश्कारा
सर भी है पा-ए-यार भी शौक़-ए-सिवा को क्या हुआ