मुझे आ गया यक़ीं सा कि यही है मेरी मंज़िल
सर-ए-राह जब किसी ने मुझे दफ़अतन पुकारा
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Jaun Eliya
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ला रहा है मय कोई शीशे में भर के सामने
बे-तअल्लुक़ तिरे आगे से गुज़र जाता है
रूह को तड़पा रही है उन की याद
ये दुनिया है यहाँ दिल को लगाना किस को आता है
शिकवे तिरे हुज़ूर किए जा रहा हूँ मैं
किसी को जब निगाहों के मुक़ाबिल देख लेता हूँ
ऐ इश्क़ ये सब दुनिया वाले बे-कार की बातें करते हैं
हर गोशा-ए-नज़र में समाए हुए हो तुम
क़स्र वीरान हुआ जाता है
दुनिया की रिवायात से बेगाना नहीं हूँ
गुलशन हो निगाहों में तो जन्नत न समझना
ग़म-ए-जहाँ के फ़साने तलाश करते हैं