उन्हें अपने दिल की ख़बरें मिरे दिल से मिल रही हैं
मैं जो उन से रूठ जाऊँ तो पयाम तक न पहुँचे
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हुई हम से ये नादानी तिरी महफ़िल में आ बैठे
दिल की तरफ़ 'शकील' तवज्जोह ज़रूर हो
उन के बग़ैर हम जो गुलिस्ताँ में आ गए
कोई आरज़ू नहीं है कोई मुद्दआ' नहीं है
दिल के बहलाने की तदबीर तो है
इक शहंशाह ने बनवा के....
हम से मय-कश जो तौबा कर बैठें
ग़म-ए-आशिक़ी से कह दो रह-ए-आम तक न पहुँचे
दुनिया की रिवायात से बेगाना नहीं हूँ
सरगुज़िश्त-ए-दिल को रूदाद-ए-जहाँ समझा था मैं
ग़म-ए-हयात भी आग़ोश-ए-हुस्न-ए-यार में है
बुज़-दिली होगी चराग़ों को दिखाना आँखें