कोई ऐ 'शकील' पूछे ये जुनूँ नहीं तो क्या है
कि उसी के हो गए हम जो न हो सका हमारा
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ख़ुश हूँ कि मिरा हुस्न-ए-तलब काम तो आया
सरगुज़िश्त-ए-दिल को रूदाद-ए-जहाँ समझा था मैं
कहीं हुस्न का तक़ाज़ा कहीं वक़्त के इशारे
लम्हे उदास उदास फ़ज़ाएँ घुटी घुटी
तस्वीर बनाता हूँ तिरी ख़ून-ए-जिगर से
सर भी है पा-ए-यार भी शौक़-ए-सिवा को क्या हुआ
वो अगर बुरा न मानें तो जहान-ए-रंग-ओ-बू में
रहमतों से निबाह में गुज़री
पहलू में दर्द-ए-इश्क़ की दुनिया लिए हुए
शिकवा-ए-इज़्तिराब कौन करे
जल्वा-ए-हुस्न-ए-करम का आसरा करता हूँ मैं