ऐ वक़्त बिगाड़ का है सब के चारा
पर तुझ से बिगड़ने का नहीं है यारा
हो जाए गर एक तू हमारा साथी
फिर ग़म नहीं फिर जाए ज़माना सारा
Parveen Shakir
Ahmad Faraz
Anwar Masood
Faiz Ahmad Faiz
Jaun Eliya
Allama Iqbal
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Rahat Indori
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रिफॉर्म की हद
जब मायूसी दिलों पे छा जाती है
मुख़ालिफ़त का जवाब ख़ामोशी से बेहतर नहीं
हुब्ब-ए-वतन
मैं तो मैं ग़ैर को मरने से अब इंकार नहीं
वाँ अगर जाएँ तो ले कर जाएँ क्या
आगे बढ़े न क़िस्सा-ए-इश्क़-ए-बुताँ से हम
इंक़लाब-ए-रोज़गार
रंज और रंज भी तन्हाई का
गुल-ओ-गुलचीं का गिला बुलबुल-ए-ख़ुश-लहजा न कर
सख़्ती का जवाब नर्मी है
मर्सिया-ए-देहली-ए-मरहूम