बस बस के हज़ारों घर उजड़ जाते हैं
गड़ गड़ के अलम लाखों उखड़ जाते हैं
आज इस की है नौबत तो कल उस की बारी
बन बन के यूँही खेल बिगड़ जाते हैं
Allama Iqbal
Gulzar
Ahmad Faraz
Mir Taqi Mir
Jaun Eliya
Habib Jalib
Javed Akhtar
Parveen Shakir
Wasi Shah
Faiz Ahmad Faiz
Anwar Masood
Rahat Indori
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सदा एक ही रुख़ नहीं नाव चलती
वाँ अगर जाएँ तो ले कर जाएँ क्या
वस्ल का उस के दिल-ए-ज़ार तमन्नाई है
सुकूत-ए-दरवेश-ए-जाहिल
कहना बड़ों का मानो
जानवर आदमी फ़रिश्ता ख़ुदा
हुब्ब-ए-वतन
धूम थी अपनी पारसाई की
मौजूदा तरक़्क़ी का अंजाम
आसार-ए-ज़वाल
हक़ वफ़ा के जो हम जताने लगे