दरिया को अपनी मौज की तुग़्यानियों से काम
कश्ती किसी की पार हो या दरमियाँ रहे
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हश्र तक याँ दिल शकेबा चाहिए
मिट्टी का दिया
है ये तकिया तिरी अताओं पर
बात कुछ हम से बन न आई आज
वस्ल का उस के दिल-ए-ज़ार तमन्नाई है
नशात-ए-उमीद
दिखाना पड़ेगा मुझे ज़ख़्म-ए-दिल
मरज़-ए-पीरी ला-इलाज है
रोना है ये कि आप भी हँसते थे वर्ना याँ
बे-क़रारी थी सब उम्मीद-ए-मुलाक़ात के साथ
सख़्त मुश्किल है शेवा-ए-तस्लीम
शहद-ओ-शकर से शीरीं उर्दू ज़बाँ हमारी