तंहाई को घर से रुख़्सत कर तो दो
सोचो किस के घर जाएगी तंहाई
Parveen Shakir
Javed Akhtar
Allama Iqbal
Rahat Indori
Ahmad Faraz
Gulzar
Faiz Ahmad Faiz
Jaun Eliya
Mir Taqi Mir
Wasi Shah
Habib Jalib
Anwar Masood
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(1172) Peoples Rate This
आसमाँ ऐसा भी क्या ख़तरा था दिल की आग से
जब इतनी जाँ से मोहब्बत बढ़ा के रक्खी थी
जो अपनी है वो ख़ाक-ए-दिल-नशीं ही काम आएगी
सिलसिले के बाद कोई सिलसिला रौशन करें
देखें क़रीब से भी तो अच्छा दिखाई दे
कितनी आसानी से मशहूर किया है ख़ुद को
इरादा हो अटल तो मोजज़ा ऐसा भी होता है
आँखें यूँ ही भीग गईं क्या देख रहे हो आँखों में
अभी ज़िंदा हैं हम पर ख़त्म कर ले इम्तिहाँ सारे
शजर के क़त्ल में इस का भी हाथ है शायद
धूप है क्या और साया क्या है अब मालूम हुआ