कितनी आसानी से मशहूर किया है ख़ुद को
मैं ने अपने से बड़े शख़्स को गाली दे कर
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तो फिर मैं क्या अगर अन्फ़ास के सब तार गुम उस में
धूप है क्या और साया क्या है अब मालूम हुआ
नहीं मालूम आख़िर किस ने किस को थाम रक्खा है
बदन कजला गया तो दिल की ताबानी से निकलूँगा
अभी ज़िंदा हैं हम पर ख़त्म कर ले इम्तिहाँ सारे
छत टपकती थी अगरचे फिर भी आ जाती थी नींद
पल पल जीने की ख़्वाहिश में कर्ब-ए-शाम-ओ-सहर माँगा
कैसी शब है एक इक करवट पे कट जाता है जिस्म
मेरी इक छोटी सी कोशिश तुझ को पाने के लिए
तंहाई को घर से रुख़्सत कर तो दो
जो आए वो हिसाब-ए-आब-ओ-दाना करने वाले थे
चेहरा लाला-रंग हुआ है मौसम-ए-रंज-ओ-मलाल के बाद