शायद अब तक मुझ में कोई घोंसला आबाद है
घर में ये चिड़ियों की चहकारें कहाँ से आ गईं
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दिन को भी इतना अंधेरा है मिरे कमरे में
कोई आँखों के शोले पोंछने वाला नहीं होगा
मिरा क़लम मिरे जज़्बात माँगने वाले
तो फिर मैं क्या अगर अन्फ़ास के सब तार गुम उस में
आसमाँ ऐसा भी क्या ख़तरा था दिल की आग से
शजर के क़त्ल में इस का भी हाथ है शायद
मैं 'ज़फ़र' ता-ज़िंदगी बिकता रहा परदेस में
रौशनी परछाईं पैकर आख़िरी
देखें क़रीब से भी तो अच्छा दिखाई दे
उसे ठहरा सको इतनी भी तो वुसअत नहीं घर में
अपने अतवार में कितना बड़ा शातिर होगा