हैफ़ उस चार गिरह कपड़े की क़िस्मत 'ग़ालिब'
जिस की क़िस्मत में हो आशिक़ का गिरेबाँ होना
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कभी नेकी भी उस के जी में गर आ जाए है मुझ से
ज़िंदगी अपनी जब इस शक्ल से गुज़री 'ग़ालिब'
सुर्मा-ए-मुफ़्त-ए-नज़र हूँ मिरी क़ीमत ये है
मैं ने मजनूँ पे लड़कपन में 'असद'
तिरे वादे पर जिए हम तो ये जान झूट जाना
दहर में नक़्श-ए-वफ़ा वजह-ए-तसल्ली न हुआ
काफ़ी है निशानी तिरा छल्ले का न देना
'ग़ालिब'-ए-ख़स्ता के बग़ैर कौन से काम बंद हैं
जुज़ क़ैस और कोई न आया ब-रू-ए-कार
तेशे बग़ैर मर न सका कोहकन 'असद'
ग़म खाने में बूदा दिल-ए-नाकाम बहुत है
हुजूम-ए-नाला हैरत आजिज़-ए-अर्ज़-ए-यक-अफ़्ग़ँ है