क़फ़स में हूँ गर अच्छा भी न जानें मेरे शेवन को

क़फ़स में हूँ गर अच्छा भी न जानें मेरे शेवन को

मिरा होना बुरा क्या है नवा-संजान-ए-गुलशन को

नहीं गर हमदमी आसाँ न हो ये रश्क क्या कम है

न दी होती ख़ुदाया आरज़ुवे-ए-दोस्त दुश्मन को

न निकला आँख से तेरी इक आँसू उस जराहत पर

किया सीने में जिस ने ख़ूँ-चकाँ मिज़्गान-ए-सोज़न को

ख़ुदा शरमाए हाथों को कि रखते हैं कशाकश में

कभी मेरे गरेबाँ को कभी जानाँ के दामन को

अभी हम क़त्ल-गह का देखना आसाँ समझते हैं

नहीं देखा शनावर जू-ए-ख़ूँ में तेरे तौसन को

हुआ चर्चा जो मेरे पाँव की ज़ंजीर बनने का

किया बेताब काँ में जुम्बिश-ए-जौहर ने आहन को

ख़ुशी क्या खेत पर मेरे अगर सौ बार अब्र आवे

समझता हूँ कि ढूँडे है अभी से बर्क़ ख़िर्मन को

वफ़ा-दारी ब-शर्त-ए-उस्तुवारी अस्ल ईमाँ है

मरे बुत-ख़ाने में तो कअ'बे में गाड़ो बरहमन को

शहादत थी मिरी क़िस्मत में जो दी थी ये ख़ू मुझ को

जहाँ तलवार को देखा झुका देता था गर्दन को

न लुटता दिन को तो कब रात को यूँ बे-ख़बर सोता!

रहा खटका न चोरी का दुआ देता हूँ रहज़न को

सुख़न क्या कह नहीं सकते कि जूया हूँ जवाहिर के

जिगर क्या हम नहीं रखते कि खोदें जा के मादन को

मिरे शाह-ए-सुलैमाँ-जाह से निस्बत नहीं 'ग़ालिब'

फ़रीदून ओ जम ओ केख़ुसरौ ओ दाराब ओ बहमन को

(1078) Peoples Rate This

Your Thoughts and Comments

Qafas Mein Hun Gar Achchha Bhi Na Jaanen Mere Shewan Ko In Hindi By Famous Poet Mirza Ghalib. Qafas Mein Hun Gar Achchha Bhi Na Jaanen Mere Shewan Ko is written by Mirza Ghalib. Complete Poem Qafas Mein Hun Gar Achchha Bhi Na Jaanen Mere Shewan Ko in Hindi by Mirza Ghalib. Download free Qafas Mein Hun Gar Achchha Bhi Na Jaanen Mere Shewan Ko Poem for Youth in PDF. Qafas Mein Hun Gar Achchha Bhi Na Jaanen Mere Shewan Ko is a Poem on Inspiration for young students. Share Qafas Mein Hun Gar Achchha Bhi Na Jaanen Mere Shewan Ko with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.