ज़ोफ़ में तअना-ए-अग़्यार का शिकवा क्या है
बात कुछ सर तो नहीं है कि उठा भी न सकूँ
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हाँ अहल-ए-तलब कौन सुने ताना-ए-ना-याफ़्त
न होगा यक-बयाबाँ माँदगी से ज़ौक़ कम मेरा
मुद्दत हुई है यार को मेहमाँ किए हुए
जिस जा नसीम शाना-कश-ए-ज़ुल्फ़-ए-यार है
वाँ उस को हौल-ए-दिल है तो याँ मैं हूँ शर्म-सार
दे मुझ को शिकायत की इजाज़त कि सितमगर
लब-ए-ख़ुश्क दर-तिश्नगी-मुर्दगाँ का
हसद से दिल अगर अफ़्सुर्दा है गर्म-ए-तमाशा हो
आँख की तस्वीर सर-नामे पे खींची है कि ता
रहमत अगर क़ुबूल करे क्या बईद है
सादिक़ हूँ अपने क़ौल का 'ग़ालिब' ख़ुदा गवाह
मुनहसिर मरने पे हो जिस की उमीद