ज़ोफ़ से गिर्या मुबद्दल ब-दम-ए-सर्द हुआ
बावर आया हमें पानी का हवा हो जाना
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इश्क़ तासीर से नौमीद नहीं
कार-गाह-ए-हस्ती में लाला दाग़-सामाँ है
मज़े जहान के अपनी नज़र में ख़ाक नहीं
दिल में ज़ौक़-ए-वस्ल ओ याद-ए-यार तक बाक़ी नहीं
चाहिए अच्छों को जितना चाहिए
हम को मालूम है जन्नत की हक़ीक़त लेकिन
आगही दाम-ए-शुनीदन जिस क़दर चाहे बिछाए
है बज़्म-ए-बुताँ में सुख़न आज़ुर्दा-लबों से
फ़ाएदा क्या सोच आख़िर तू भी दाना है 'असद'
जादा-ए-रह ख़ुर को वक़्त-ए-शाम है तार-ए-शुआअ'
की वफ़ा हम से तो ग़ैर इस को जफ़ा कहते हैं
जुनूँ तोहमत-कश-ए-तस्कीं न हो गर शादमानी की