चाहिए अच्छों को जितना चाहिए
ये अगर चाहें तो फिर क्या चाहिए
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जज़्बा-ए-बे-इख़्तियार-ए-शौक़ देखा चाहिए
मैं और बज़्म-ए-मय से यूँ तिश्ना-काम आऊँ
न सताइश की तमन्ना न सिले की परवा
अगर ग़फ़लत से बाज़ आया जफ़ा की
है आरमीदगी में निकोहिश बजा मुझे
न पूछ नुस्ख़ा-ए-मरहम जराहत-ए-दिल का
इश्क़ तासीर से नौमीद नहीं
रहे न जान तो क़ातिल को ख़ूँ-बहा दीजे
हैं आज क्यूँ ज़लील कि कल तक न थी पसंद
सर पा-ए-ख़ुम पे चाहिए हंगाम-ए-बे-ख़ुदी
मौत का एक दिन मुअय्यन है
पिन्हाँ था दाम-ए-सख़्त क़रीब आशियान के