चाहते हैं ख़ूब-रूयों को 'असद'
आप की सूरत तो देखा चाहिए
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फिर कुछ इक दिल को बे-क़रारी है
मरते हैं आरज़ू में मरने की
ना-कर्दा गुनाहों की भी हसरत की मिले दाद
वाँ पहुँच कर जो ग़श आता पए-हम है हम को
दे मुझ को शिकायत की इजाज़त कि सितमगर
सीखे हैं मह-रुख़ों के लिए हम मुसव्वरी
लाज़िम था कि देखो मिरा रस्ता कोई दिन और
नक़्श फ़रियादी है किस की शोख़ी-ए-तहरीर का
ग़ैर को या रब वो क्यूँकर मन-ए-गुस्ताख़ी करे
दिल ही तो है सियासत-ए-दरबाँ से डर गया
वो आ के ख़्वाब में तस्कीन-ए-इज़्तिराब तो दे
ताब लाए ही बनेगी 'ग़ालिब'