ग़ैर को या रब वो क्यूँकर मन-ए-गुस्ताख़ी करे
गर हया भी उस को आती है तो शरमा जाए है
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नुक्ता-चीं है ग़म-ए-दिल उस को सुनाए न बने
कब वो सुनता है कहानी मेरी
रहिए अब ऐसी जगह चल कर जहाँ कोई न हो
ज़ख़्म पर छिड़कें कहाँ तिफ़्लान-ए-बे-परवा नमक
वा-हसरता कि यार ने खींचा सितम से हाथ
जुनूँ की दस्त-गीरी किस से हो गर हो न उर्यानी
वफ़ा कैसी कहाँ का इश्क़ जब सर फोड़ना ठहरा
दर्द मिन्नत-कश-ए-दवा न हुआ
हुस्न-ए-मह गरचे ब-हंगाम-ए-कमाल अच्छा है
जुज़ क़ैस और कोई न आया ब-रू-ए-कार
रौंदी हुई है कौकबा-ए-शहरयार की
हरीफ़-ए-मतलब-ए-मुश्किल नहीं फ़ुसून-ए-नियाज़