दिल ही तो है सियासत-ए-दरबाँ से डर गया
मैं और जाऊँ दर से तिरे बिन सदा किए
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हूँ मैं भी तमाशाई-ए-नैरंग-ए-तमन्ना
सर पा-ए-ख़ुम पे चाहिए हंगाम-ए-बे-ख़ुदी
सीमाब-पुश्त गर्मी-ए-आईना दे है हम
बे-ख़ुदी बे-सबब नहीं 'ग़ालिब'
दिल को नियाज़-ए-हसरत-ए-दीदार कर चुके
अल्लाह रे ज़ौक़-ए-दश्त-नवर्दी कि बाद-ए-मर्ग
रगों में दौड़ते फिरने के हम नहीं क़ाइल
मैं ने चाहा था कि अंदोह-ए-वफ़ा से छूटूँ
ज़िक्र उस परी-वश का और फिर बयाँ अपना
की वफ़ा हम से तो ग़ैर इस को जफ़ा कहते हैं
दीवानगी से दोश पे ज़ुन्नार भी नहीं
उग रहा है दर-ओ-दीवार पे सब्ज़ा 'ग़ालिब'