चलता हूँ थोड़ी दूर हर इक तेज़-रौ के साथ
पहचानता नहीं हूँ अभी राहबर को मैं
Faiz Ahmad Faiz
Jaun Eliya
Parveen Shakir
Wasi Shah
Javed Akhtar
Rahat Indori
Mir Taqi Mir
Anwar Masood
Ahmad Faraz
Allama Iqbal
Mohsin Naqvi
Habib Jalib
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(3076) Peoples Rate This
दे मुझ को शिकायत की इजाज़त कि सितमगर
है ख़याल-ए-हुस्न में हुस्न-ए-अमल का सा ख़याल
रही न ताक़त-ए-गुफ़्तार और अगर हो भी
कोह के हों बार-ए-ख़ातिर गर सदा हो जाइए
घर में था क्या कि तिरा ग़म उसे ग़ारत करता
जादा-ए-रह ख़ुर को वक़्त-ए-शाम है तार-ए-शुआअ'
हज़ारों ख़्वाहिशें ऐसी कि हर ख़्वाहिश पर दम निकले
ग़ैर लें महफ़िल में बोसे जाम के
ता फिर न इंतिज़ार में नींद आए उम्र भर
दिल में ज़ौक़-ए-वस्ल ओ याद-ए-यार तक बाक़ी नहीं
पी जिस क़दर मिले शब-ए-महताब में शराब
दम लिया था न क़यामत ने हनूज़