ता फिर न इंतिज़ार में नींद आए उम्र भर
आने का अहद कर गए आए जो ख़्वाब में
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है मुश्तमिल नुमूद-ए-सुवर पर वजूद-ए-बहर
हासिल से हाथ धो बैठ ऐ आरज़ू-ख़िरामी
बर्शिकाल-ए-गिर्या-ए-आशिक़ है देखा चाहिए
करे है क़त्ल लगावट में तेरा रो देना
दर्द से मेरे है तुझ को बे-क़रारी हाए हाए
लब-ए-ईसा की जुम्बिश करती है गहवारा-जम्बानी
कोई मेरे दिल से पूछे तिरे तीर-ए-नीम-कश को
दिल-ए-नादाँ तुझे हुआ क्या है
है काएनात को हरकत तेरे ज़ौक़ से
मेहरबाँ हो के बुला लो मुझे चाहो जिस वक़्त
कहते हो न देंगे हम दिल अगर पड़ा पाया
इक ख़ूँ-चकाँ कफ़न में करोड़ों बनाओ हैं