करे है क़त्ल लगावट में तेरा रो देना
तिरी तरह कोई तेग़-ए-निगह को आब तो दे
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कोई वीरानी सी वीरानी है
वफ़ा-दारी ब-शर्त-ए-उस्तुवारी अस्ल ईमाँ है
देखिए पाते हैं उश्शाक़ बुतों से क्या फ़ैज़
हर क़दम दूरी-ए-मंज़िल है नुमायाँ मुझ से
हम ने माना कि तग़ाफ़ुल न करोगे लेकिन
सादगी पर उस की मर जाने की हसरत दिल में है
आह को चाहिए इक उम्र असर होते तक
बे-ख़ुदी बे-सबब नहीं 'ग़ालिब'
ज़ोफ़ से गिर्या मुबद्दल ब-दम-ए-सर्द हुआ
कोह के हों बार-ए-ख़ातिर गर सदा हो जाइए
जो न नक़्द-ए-दाग़-ए-दिल की करे शोला पासबानी
हाँ अहल-ए-तलब कौन सुने ताना-ए-ना-याफ़्त