कोई वीरानी सी वीरानी है
दश्त को देख के घर याद आया
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मेहरबाँ हो के बुला लो मुझे चाहो जिस वक़्त
ए'तिबार-ए-इश्क़ की ख़ाना-ख़राबी देखना
रोने से और इश्क़ में बे-बाक हो गए
जुनूँ की दस्त-गीरी किस से हो गर हो न उर्यानी
नक़्श फ़रियादी है किस की शोख़ी-ए-तहरीर का
सब कहाँ कुछ लाला-ओ-गुल में नुमायाँ हो गईं
दाम-ए-हर-मौज में है हल्क़ा-ए-सद-काम-ए-नहंग
'ग़ालिब' अपना ये अक़ीदा है ब-क़ौल-ए-'नासिख़'
तू दोस्त किसू का भी सितमगर न हुआ था
वो मिरी चीन-ए-जबीं से ग़म-ए-पिन्हाँ समझा
ग़म खाने में बूदा दिल-ए-नाकाम बहुत है
फिर उसी बेवफ़ा पे मरते हैं