कुछ तो पढ़िए कि लोग कहते हैं
आज 'ग़ालिब' ग़ज़ल-सरा न हुआ
Anwar Masood
Parveen Shakir
Rahat Indori
Mohsin Naqvi
Habib Jalib
Allama Iqbal
Wasi Shah
Faiz Ahmad Faiz
Jaun Eliya
Gulzar
Mir Taqi Mir
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रहा गर कोई ता-क़यामत सलामत
निस्यह-ओ-नक़्द-ए-दो-आलम की हक़ीक़त मालूम
जो न नक़्द-ए-दाग़-ए-दिल की करे शोला पासबानी
बे-ख़ुदी बे-सबब नहीं 'ग़ालिब'
बे-पर्दा सू-ए-वादी-ए-मजनूँ गुज़र न कर
क्यूँ न ठहरें हदफ़-ए-नावक-ए-बे-दाद कि हम
क़ासिद के आते आते ख़त इक और लिख रखूँ
किसी को दे के दिल कोई नवा-संज-ए-फ़ुग़ाँ क्यूँ हो
तुम अपने शिकवे की बातें न खोद खोद के पूछो
हुए मर के हम जो रुस्वा हुए क्यूँ न ग़र्क़-ए-दरिया
वाइज़ न तुम पियो न किसी को पिला सको
उग रहा है दर-ओ-दीवार पे सब्ज़ा 'ग़ालिब'