क़ासिद के आते आते ख़त इक और लिख रखूँ
मैं जानता हूँ जो वो लिखेंगे जवाब में
Faiz Ahmad Faiz
Mir Taqi Mir
Rahat Indori
Gulzar
Habib Jalib
Parveen Shakir
Javed Akhtar
Anwar Masood
Ahmad Faraz
Allama Iqbal
Wasi Shah
Jaun Eliya
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Friends Poetry
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सब कहाँ कुछ लाला-ओ-गुल में नुमायाँ हो गईं
आ ही जाता वो राह पर 'ग़ालिब'
देखिए पाते हैं उश्शाक़ बुतों से क्या फ़ैज़
महरम नहीं है तू ही नवा-हा-ए-राज़ का
पिला दे ओक से साक़ी जो हम से नफ़रत है
ता फिर न इंतिज़ार में नींद आए उम्र भर
कहते हैं जीते हैं उम्मीद पे लोग
हुई ताख़ीर तो कुछ बाइस-ए-ताख़ीर भी था
पीनस में गुज़रते हैं जो कूचे से वह मेरे
जहाँ तेरा नक़्श-ए-क़दम देखते हैं
छोड़ूँगा मैं न उस बुत-ए-काफ़िर का पूजना
किसी को दे के दिल कोई नवा-संज-ए-फ़ुग़ाँ क्यूँ हो