छोड़ूँगा मैं न उस बुत-ए-काफ़िर का पूजना
छोड़े न ख़ल्क़ गो मुझे काफ़र कहे बग़ैर
Jaun Eliya
Parveen Shakir
Ahmad Faraz
Allama Iqbal
Mir Taqi Mir
Faiz Ahmad Faiz
Habib Jalib
Gulzar
Rahat Indori
Mohsin Naqvi
Wasi Shah
Javed Akhtar
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(1662) Peoples Rate This
जान तुम पर निसार करता हूँ
मज़े जहान के अपनी नज़र में ख़ाक नहीं
है सब्ज़ा-ज़ार हर दर-ओ-दीवार-ए-ग़म-कदा
नशा-ए-रंग से है वाशुद-ए-गुल
'ग़ालिब'-ए-ख़स्ता के बग़ैर कौन से काम बंद हैं
न सुनो गर बुरा कहे कोई
कभी नेकी भी उस के जी में गर आ जाए है मुझ से
ग़लती-हा-ए-मज़ामीं मत पूछ
जिस बज़्म में तू नाज़ से गुफ़्तार में आवे
मस्ती ब-ज़ौक़-ए-ग़फ़लत-ए-साक़ी हलाक है
जिस ज़ख़्म की हो सकती हो तदबीर रफ़ू की
हरीफ़-ए-मतलब-ए-मुश्किल नहीं फ़ुसून-ए-नियाज़