बे-पर्दा सू-ए-वादी-ए-मजनूँ गुज़र न कर
हर ज़र्रा के नक़ाब में दिल बे-क़रार है
Jaun Eliya
Gulzar
Rahat Indori
Allama Iqbal
Ahmad Faraz
Mohsin Naqvi
Parveen Shakir
Anwar Masood
Wasi Shah
Faiz Ahmad Faiz
Mir Taqi Mir
Javed Akhtar
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(1571) Peoples Rate This
रश्क कहता है कि उस का ग़ैर से इख़्लास हैफ़
बार-हा देखी हैं उन की रंजिशें
जिस ज़ख़्म की हो सकती हो तदबीर रफ़ू की
बस-कि हूँ 'ग़ालिब' असीरी में भी आतिश ज़ेर-ए-पा
मुज़्दा ऐ ज़ौक़-ए-असीरी कि नज़र आता है
पूछे है क्या वजूद ओ अदम अहल-ए-शौक़ का
ग़म नहीं होता है आज़ादों को बेश अज़-यक-नफ़स
नींद उस की है दिमाग़ उस का है रातें उस की हैं
होगा कोई ऐसा भी कि 'ग़ालिब' को न जाने
दहर में नक़्श-ए-वफ़ा वजह-ए-तसल्ली न हुआ
हर क़दम दूरी-ए-मंज़िल है नुमायाँ मुझ से
दैर नहीं हरम नहीं दर नहीं आस्ताँ नहीं