निस्यह-ओ-नक़्द-ए-दो-आलम की हक़ीक़त मालूम
ले लिया मुझ से मिरी हिम्मत-ए-आली ने मुझे
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मैं ना-मुराद दिल की तसल्ली को क्या करूँ
दीवानगी से दोश पे ज़ुन्नार भी नहीं
तपिश से मेरी वक़्फ़-ए-कशमकश हर तार-ए-बिस्तर है
इश्क़ तासीर से नौमीद नहीं
बहरा हूँ मैं तो चाहिए दूना हो इल्तिफ़ात
हुई जिन से तवक़्क़ो ख़स्तगी की दाद पाने की
हो चुकीं 'ग़ालिब' बलाएँ सब तमाम
आगे आती थी हाल-ए-दिल पे हँसी
नफ़स न अंजुमन-ए-आरज़ू से बाहर खींच
नाला जुज़ हुस्न-ए-तलब ऐ सितम-ईजाद नहीं
चश्म-ए-ख़ूबाँ ख़ामुशी में भी नवा-पर्दाज़ है
कब वो सुनता है कहानी मेरी