बहरा हूँ मैं तो चाहिए दूना हो इल्तिफ़ात
सुनता नहीं हूँ बात मुकर्रर कहे बग़ैर
Jaun Eliya
Habib Jalib
Mohsin Naqvi
Anwar Masood
Gulzar
Wasi Shah
Faiz Ahmad Faiz
Mir Taqi Mir
Allama Iqbal
Parveen Shakir
Javed Akhtar
Rahat Indori
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(1904) Peoples Rate This
गंजीना-ए-मअ'नी का तिलिस्म उस को समझिए
इब्न-ए-मरयम हुआ करे कोई
लाज़िम था कि देखो मिरा रस्ता कोई दिन और
धमकी में मर गया जो न बाब-ए-नबर्द था
बे-पर्दा सू-ए-वादी-ए-मजनूँ गुज़र न कर
गिरनी थी हम पे बर्क़-ए-तजल्ली न तूर पर
करने गए थे उस से तग़ाफ़ुल का हम गिला
दोस्त ग़म-ख़्वारी में मेरी सई फ़रमावेंगे क्या
पीनस में गुज़रते हैं जो कूचे से वह मेरे
दश्ना-ए-ग़म्ज़ा जाँ-सिताँ नावक-ए-नाज़ बे-पनाह
सब कहाँ कुछ लाला-ओ-गुल में नुमायाँ हो गईं
नहीं कि मुझ को क़यामत का ए'तिक़ाद नहीं