बहुत दिनों में तग़ाफ़ुल ने तेरे पैदा की
वो इक निगह कि ब-ज़ाहिर निगाह से कम है
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कहते हो न देंगे हम दिल अगर पड़ा पाया
मैं ने जुनूँ से की जो 'असद' इल्तिमास-ए-रंग
दाग़-ए-फ़िराक़-ए-सोहबत-ए-शब की जली हुई
नींद उस की है दिमाग़ उस का है रातें उस की हैं
उन के देखे से जो आ जाती है मुँह पर रौनक़
शबनम ब-गुल-ए-लाला न ख़ाली ज़-अदा है
जाना पड़ा रक़ीब के दर पर हज़ार बार
भागे थे हम बहुत सो उसी की सज़ा है ये
नक़्श फ़रियादी है किस की शोख़ी-ए-तहरीर का
हस्ती के मत फ़रेब में आ जाइयो 'असद'
जिस ज़ख़्म की हो सकती हो तदबीर रफ़ू की
मज़े जहान के अपनी नज़र में ख़ाक नहीं