ए'तिबार-ए-इश्क़ की ख़ाना-ख़राबी देखना
ग़ैर ने की आह लेकिन वो ख़फ़ा मुझ पर हुआ
Habib Jalib
Javed Akhtar
Anwar Masood
Jaun Eliya
Parveen Shakir
Mir Taqi Mir
Mohsin Naqvi
Rahat Indori
Allama Iqbal
Wasi Shah
Faiz Ahmad Faiz
Gulzar
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(1245) Peoples Rate This
रौ में है रख़्श-ए-उम्र कहाँ देखिए थमे
देखना क़िस्मत कि आप अपने पे रश्क आ जाए है
वो मिरी चीन-ए-जबीं से ग़म-ए-पिन्हाँ समझा
फूँका है किस ने गोश-ए-मोहब्बत में ऐ ख़ुदा
लरज़ता है मिरा दिल ज़हमत-ए-मेहर-ए-दरख़्शाँ पर
बाज़ीचा-ए-अतफ़ाल है दुनिया मिरे आगे
आते हैं ग़ैब से ये मज़ामीं ख़याल में
फिर कुछ इक दिल को बे-क़रारी है
हैराँ हूँ दिल को रोऊँ कि पीटूँ जिगर को मैं
ये न थी हमारी क़िस्मत कि विसाल-ए-यार होता
मेहरबाँ हो के बुला लो मुझे चाहो जिस वक़्त
नींद उस की है दिमाग़ उस का है रातें उस की हैं