मुद्दत हुई है यार को मेहमाँ किए हुए
जोश-ए-क़दह से बज़्म चराग़ाँ किए हुए
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ग़लती-हा-ए-मज़ामीं मत पूछ
सियाही जैसे गिर जाए दम-ए-तहरीर काग़ज़ पर
शब कि वो मजलिस-फ़रोज़-ए-ख़ल्वत-ए-नामूस था
दिल से मिटना तिरी अंगुश्त-ए-हिनाई का ख़याल
अदा-ए-ख़ास से 'ग़ालिब' हुआ है नुक्ता-सरा
बस कि फ़ा'आलुम्मा-युरीद है आज
जाना पड़ा रक़ीब के दर पर हज़ार बार
हैराँ हूँ दिल को रोऊँ कि पीटूँ जिगर को मैं
मज़े जहान के अपनी नज़र में ख़ाक नहीं
रश्क कहता है कि उस का ग़ैर से इख़्लास हैफ़
रफ़्तार-ए-उम्र क़त-ए-रह-ए-इज़्तिराब है
बज़्म-ए-शाहंशाह में अशआर का दफ़्तर खुला