काबा किस मुँह से जाओगे 'ग़ालिब'
शर्म तुम को मगर नहीं आती
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आतिश-ए-दोज़ख़ में ये गर्मी कहाँ
इशरत-ए-क़तरा है दरिया में फ़ना हो जाना
वाइज़ न तुम पियो न किसी को पिला सको
हज़रत-ए-नासेह गर आवें दीदा ओ दिल फ़र्श-ए-राह
कहूँ जो हाल तो कहते हो मुद्दआ' कहिए
हज़ारों ख़्वाहिशें ऐसी कि हर ख़्वाहिश पे दम निकले
फिर मुझे दीदा-ए-तर याद आया
थी ख़बर गर्म कि 'ग़ालिब' के उड़ेंगे पुर्ज़े
ज़िक्र उस परी-वश का और फिर बयाँ अपना
की वफ़ा हम से तो ग़ैर इस को जफ़ा कहते हैं
दिल ही तो है सियासत-ए-दरबाँ से डर गया
अजब नशात से जल्लाद के चले हैं हम आगे