फ़र्दा-ओ-दी का तफ़रक़ा यक बार मिट गया
कल तुम गए कि हम पे क़यामत गुज़र गई
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मत मर्दुमक-ए-दीदा में समझो ये निगाहें
हुस्न-ए-बे-परवा ख़रीदार-ए-माता-ए-जल्वा है
जब मय-कदा छुटा तो फिर अब क्या जगह की क़ैद
आशिक़ी सब्र-तलब और तमन्ना बेताब
फ़ाएदा क्या सोच आख़िर तू भी दाना है 'असद'
दिल-ए-हर-क़तरा है साज़-ए-अनल-बहर
मैं ने चाहा था कि अंदोह-ए-वफ़ा से छूटूँ
ये कहाँ की दोस्ती है कि बने हैं दोस्त नासेह
इक ख़ूँ-चकाँ कफ़न में करोड़ों बनाओ हैं
क़ासिद के आते आते ख़त इक और लिख रखूँ
दिल ही तो है न संग-ओ-ख़िश्त दर्द से भर न आए क्यूँ
तेरे तौसन को सबा बाँधते हैं