एक एक क़तरे का मुझे देना पड़ा हिसाब
ख़ून-ए-जिगर वदीअत-ए-मिज़्गान-ए-यार था
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लेता हूँ मकतब-ए-ग़म-ए-दिल में सबक़ हुनूज़
कोई दिन गर ज़िंदगानी और है
हर-चंद हो मुशाहिदा-ए-हक़ की गुफ़्तुगू
निस्यह-ओ-नक़्द-ए-दो-आलम की हक़ीक़त मालूम
कब वो सुनता है कहानी मेरी
पुर हूँ मैं शिकवे से यूँ राग से जैसे बाजा
हाँ वो नहीं ख़ुदा-परस्त जाओ वो बेवफ़ा सही
मिरी हस्ती फ़ज़ा-ए-हैरत आबाद-ए-तमन्ना है
हर इक मकान को है मकीं से शरफ़ 'असद'
आता है दाग़-ए-हसरत-ए-दिल का शुमार याद
तेरे तौसन को सबा बाँधते हैं
लब-ए-ईसा की जुम्बिश करती है गहवारा-जम्बानी