आता है दाग़-ए-हसरत-ए-दिल का शुमार याद
मुझ से मिरे गुनह का हिसाब ऐ ख़ुदा न माँग
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'ग़ालिब' तिरा अहवाल सुना देंगे हम उन को
है वस्ल हिज्र आलम-ए-तमकीन-ओ-ज़ब्त में
नशा-ए-रंग से है वाशुद-ए-गुल
बना कर फ़क़ीरों का हम भेस 'ग़ालिब'
दिखा के जुम्बिश-ए-लब ही तमाम कर हम को
क्यूँकर उस बुत से रखूँ जान अज़ीज़
हर बुल-हवस ने हुस्न-परस्ती शिआ'र की
मैं ने मजनूँ पे लड़कपन में 'असद'
है बज़्म-ए-बुताँ में सुख़न आज़ुर्दा-लबों से
ज़िक्र उस परी-वश का और फिर बयाँ अपना
इस सादगी पे कौन न मर जाए ऐ ख़ुदा
नींद उस की है दिमाग़ उस का है रातें उस की हैं