क्यूँकर उस बुत से रखूँ जान अज़ीज़
क्या नहीं है मुझे ईमान अज़ीज़
दिल से निकला पे न निकला दिल से
है तिरे तीर का पैकान अज़ीज़
ताब लाए ही बनेगी 'ग़ालिब'
वाक़िआ सख़्त है और जान अज़ीज़
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क्या वो नमरूद की ख़ुदाई थी
ख़ुदाया जज़्बा-ए-दिल की मगर तासीर उल्टी है
सादगी पर उस की मर जाने की हसरत दिल में है
फूँका है किस ने गोश-ए-मोहब्बत में ऐ ख़ुदा
'ग़ालिब' बुरा न मान जो वाइज़ बुरा कहे
क्या फ़र्ज़ है कि सब को मिले एक सा जवाब
है कहाँ तमन्ना का दूसरा क़दम या रब
इश्क़ पर ज़ोर नहीं है ये वो आतिश 'ग़ालिब'
गर ख़ामुशी से फ़ाएदा इख़्फ़ा-ए-हाल है
रगों में दौड़ते फिरने के हम नहीं क़ाइल
जानता हूँ सवाब-ए-ताअत-ओ-ज़ोहद
याद है शादी में भी हंगामा-ए-या-रब मुझे