अपनी गली में मुझ को न कर दफ़्न बाद-ए-क़त्ल
मेरे पते से ख़ल्क़ को क्यूँ तेरा घर मिले
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वफ़ा-दारी ब-शर्त-ए-उस्तुवारी अस्ल ईमाँ है
सुर्मा-ए-मुफ़्त-ए-नज़र हूँ मिरी क़ीमत ये है
देखिए लाती है उस शोख़ की नख़वत क्या रंग
हुज़ूर-ए-शाह में अहल-ए-सुख़न की आज़माइश है
हर-चंद हो मुशाहिदा-ए-हक़ की गुफ़्तुगू
ज़ख़्म पर छिड़कें कहाँ तिफ़्लान-ए-बे-परवा नमक
या-रब ज़माना मुझ को मिटाता है किस लिए
दम लिया था न क़यामत ने हनूज़
लिखते रहे जुनूँ की हिकायात-ए-ख़ूँ-चकाँ
हुजूम-ए-ग़म से याँ तक सर-निगूनी मुझ को हासिल है
सर पा-ए-ख़ुम पे चाहिए हंगाम-ए-बे-ख़ुदी
बे-पर्दा सू-ए-वादी-ए-मजनूँ गुज़र न कर