अब कौन जा के साहिब-ए-मिम्बर से ये कहे
क्यूँ ख़ून पी रहा है सितमगर शराब पी
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दरख़्तों के लिए
अब तो अश्कों की रवानी में न रक्खी जाए
इस कॉकटेल का तो नशा ही कुछ और है
हम ने किसी की याद में अक्सर शराब पी
हमारे कमरे में उस की यादें नहीं हैं 'फ़ाज़िल'
ज़ियादा देर उसे देखना भी है 'फ़ाज़िल'
शौक़ीन मिज़ाजों के रंगीन तबीअ'त के
मैं ही अपनी क़ैद में था और मैं ही एक दिन
तुम ने पूछा है तो अहवाल बता देते हैं
मिसाल-ए-शम्अ जला हूँ धुआँ सा बिखरा हूँ
दास्तानों में मिले थे दास्ताँ रह जाएँगे