ज़ियादा देर उसे देखना भी है 'फ़ाज़िल'
और अपने आप को थोड़ा सा कम भी रखना है
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इस कॉकटेल का तो नशा ही कुछ और है
मैं इक थका हुआ इंसान और क्या करता
हमारे कमरे में उस की यादें नहीं हैं 'फ़ाज़िल'
सफ़ेद-पोशी-ए-दिल का भरम भी रखना है
मैं अक्सर खो सा जाता हूँ गली-कूचों के जंगल में
मेरे होंटों पे तेरे नाम की लर्ज़िश तो नहीं
मुद्दत के ब'अद आज मैं ऑफ़िस नहीं गया
मिरे लिए न रुक सके तो क्या हुआ
मैं अपने आप से आगे निकलने वाला था
ख़्वाब में देख रहा हूँ कि हक़ीक़त में उसे
गुज़रती है जो दिल पर वो कहानी याद रखता हूँ
सरहदें