मुद्दत के ब'अद आज मैं ऑफ़िस नहीं गया
ख़ुद अपने साथ बैठ के दिन भर शराब पी
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सरहदें
ज़ियादा देर उसे देखना भी है 'फ़ाज़िल'
अब तो अश्कों की रवानी में न रक्खी जाए
मिसाल-ए-शम्अ जला हूँ धुआँ सा बिखरा हूँ
ज़िंदगानी को अदम-आबाद ले जाने लगा
मिरे वजूद को परछाइयों ने तोड़ दिया
मिलने का भी आख़िर कोई इम्कान बनाते
मैं ही अपनी क़ैद में था और मैं ही एक दिन
सब अपने अपने दियों के असीर पाए गए
तुम कभी एक नज़र मेरी तरफ़ भी देखो
दास्तानों में मिले थे दास्ताँ रह जाएँगे
तुम ने पूछा है तो अहवाल बता देते हैं