मिरे वजूद को परछाइयों ने तोड़ दिया
मैं इक हिसार था तन्हाइयों ने तोड़ दिया
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दास्तानों में मिले थे दास्ताँ रह जाएँगे
शौक़ीन मिज़ाजों के रंगीन तबीअ'त के
गुज़रती है जो दिल पर वो कहानी याद रखता हूँ
अपने होने के जो आसार बनाने हैं मुझे
हम ने किसी की याद में अक्सर शराब पी
कहीं से नीले कहीं से काले पड़े हुए हैं
मिसाल-ए-शम्अ जला हूँ धुआँ सा बिखरा हूँ
दरख़्तों के लिए
सफ़ेद-पोशी-ए-दिल का भरम भी रखना है
अब कौन जा के साहिब-ए-मिम्बर से ये कहे
अब तो अश्कों की रवानी में न रक्खी जाए