मिरे लिए न रुक सके तो क्या हुआ
जहाँ कहीं ठहर गए हो ख़ुश रहो
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मेरे होंटों पे तेरे नाम की लर्ज़िश तो नहीं
गुज़रती है जो दिल पर वो कहानी याद रखता हूँ
सब अपने अपने दियों के असीर पाए गए
सफ़ेद-पोशी-ए-दिल का भरम भी रखना है
सुख़न जो उस ने कहे थे गिरह से बाँध लिए
ख़िज़ाँ का रंग दरख़्तों पे आ के बैठ गया
हमारे कमरे में उस की यादें नहीं हैं 'फ़ाज़िल'
मिरे वजूद को परछाइयों ने तोड़ दिया
मैं इक थका हुआ इंसान और क्या करता
मुद्दत के ब'अद आज मैं ऑफ़िस नहीं गया