सब अपने अपने दियों के असीर पाए गए
मैं चाँद बन के कई आँगनों में उतरा हूँ
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सुख़न जो उस ने कहे थे गिरह से बाँध लिए
अब तो अश्कों की रवानी में न रक्खी जाए
मेरे होंटों पे तेरे नाम की लर्ज़िश तो नहीं
मैं इक थका हुआ इंसान और क्या करता
मिलने का भी आख़िर कोई इम्कान बनाते
हम ने किसी की याद में अक्सर शराब पी
दरख़्तों के लिए
ज़िंदगी हो तो कई काम निकल आते हैं
ज़ियादा देर उसे देखना भी है 'फ़ाज़िल'
तुम कभी एक नज़र मेरी तरफ़ भी देखो
मिसाल-ए-शम्अ जला हूँ धुआँ सा बिखरा हूँ