तुम कभी एक नज़र मेरी तरफ़ भी देखो
इक तवक़्क़ो ही तो है कोई गुज़ारिश तो नहीं
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मुद्दत के ब'अद आज मैं ऑफ़िस नहीं गया
शौक़ीन मिज़ाजों के रंगीन तबीअ'त के
इस कॉकटेल का तो नशा ही कुछ और है
सब अपने अपने दियों के असीर पाए गए
मिरे वजूद को परछाइयों ने तोड़ दिया
मिसाल-ए-शम्अ जला हूँ धुआँ सा बिखरा हूँ
दास्तानों में मिले थे दास्ताँ रह जाएँगे
हम ने किसी की याद में अक्सर शराब पी
ज़िंदगी हो तो कई काम निकल आते हैं
ख़ुमार-ए-शब में तिरा नाम लब पे आया क्यूँ
ख़्वाब में देख रहा हूँ कि हक़ीक़त में उसे
कहीं से नीले कहीं से काले पड़े हुए हैं